Monday, June 30, 2025







 'कबाड़ - द कॉइन' फिल्म समीक्षक, लेखक-निर्देशक वरदराज स्वामी की फिल्म 'कबाड़ - द कॉइन' की एक विस्तृत और सकारात्मक समीक्षा प्रस्तुत करता हूँ।


फिल्म समीक्षा: 'कबाड़ - द कॉइन' - कबाड़ में छिपी इंसानी रिश्तों की बेशकीमती कहानी

रेटिंग: ★★★★☆ (4/5)

आज के दौर में जब सिनेमा बड़े बजट, भव्य सेट्स और स्टार पावर पर निर्भर हो गया है, तब 'कबाड़ - द कॉइन' एक ताज़ी हवा के झोंके की तरह आती है। यह फिल्म इस बात का सशक्त प्रमाण है कि एक अच्छी कहानी को कहने के लिए बड़े तामझाम की नहीं, बल्कि एक मज़बूत इरादे और संवेदनशील नज़रिए की ज़रूरत होती है। लेखक-निर्देशक वरदराज स्वामी ने एक साधारण से विचार को उठाकर उसे एक ऐसी यादगार कहानी में बदल दिया ہے, जो सिनेमाघरों से निकलने के बाद भी आपके साथ रह जाती है।

कहानी: एक सिक्के के दो पहलू

फिल्म की कहानी कबाड़ी का काम करने वाले एक सीधे-सादे लड़के बंधन (विवान शाह) के इर्द-गिर्द घूमती है। उसकी ज़िंदगी तब एक नाटकीय मोड़ लेती है जब उसे कबाड़ में 18वीं सदी का एक बेशकीमती 'राम-सिया' सिक्का मिलता है। यह सिक्का सिर्फ धातु का एक टुकड़ा नहीं, बल्कि इंसानी भावनाओं, लालच, प्रेम और नैतिकता की कसौटी बन जाता है। एक तरफ उसका प्यार रोमा (ज़ोया अफरोज) है, तो दूसरी तरफ उस सिक्के के पीछे पड़े लोग। कहानी बड़ी ही खूबसूरती से दिखाती है कि कैसे एक साधारण सा सिक्का असाधारण तूफ़ान खड़ा कर सकता है और लोगों के असली चेहरे सामने ला सकता है।

लेखन और निर्देशन: सादगी में छिपी गहराई

वरदराज स्वामी का निर्देशन और लेखन इस फिल्म की सबसे बड़ी ताकत है।

  • लेखन: पटकथा लेखक वरदराज स्वामी एवं शाहजाद अहमद की स्क्रीनप्ले







    बेहद कसी हुई और यथार्थ के करीब है। स्वामी ने लालच और मासूमियत के बीच की महीन रेखा को बड़ी ही कुशलता से दिखाया है। संवाद ज़मीनी और सच्चे हैं, जो किरदारों को और भी विश्वसनीय बनाते हैं। कहानी का सबसे खूबसूरत पहलू यह है कि यह किसी को जज नहीं करती; यह बस परिस्थितियों को सामने रखती है और दर्शकों को सोचने पर मजबूर करती है कि असली खज़ाना क्या है—वो सिक्का या इंसानी रिश्ते?

  • निर्देशन: एक निर्देशक के तौर पर स्वामी की पकड़ काबिले-तारीफ़ है। उन्होंने कहानी को बिना किसी मेलोड्रामा के, बड़ी ही ईमानदारी और सादगी से पेश किया है। उन्होंने किरदारों की दुनिया को इतने वास्तविक ढंग से रचा है कि आप खुद को उस माहौल का हिस्सा महसूस करने लगते हैं। फिल्म की गति बिल्कुल सही है, जो धीरे-धीरे तनाव और उत्सुकता को बढ़ाती है। यह उनके सधे हुए निर्देशन का ही कमाल है कि एक छोटे से सिक्के की कहानी इतनी आकर्षक और रोमांचक लगती है।

अभिनय: किरदारों में बसी जान

अभिनय के मोर्चे पर, 'कबाड़ - द कॉइन' चमकती है।

  • विवान शाह ने बंधन के किरदार में जान डाल दी है। उन्होंने एक आम, थोड़े लालची लेकिन दिल के अच्छे लड़के की भूमिका को पूरी ईमानदारी से निभाया है। उनकी आँखों में एक आम इंसान की हसरतें, उसका डर और उसकी उलझन साफ़ दिखती है। यह उनके करियर के बेहतरीन प्रदर्शनों में से एक है।

  • ज़ोया अफरोज ने रोमा के किरदार में ख़ूबसूरती और मज़बूती, दोनों का सही संतुलन दिखाया है। वह सिर्फ एक 'लव इंटरेस्ट' बनकर नहीं रह जातीं, बल्कि कहानी का एक अहम हिस्सा हैं। विवान के साथ उनकी केमिस्ट्री सहज और प्यारी लगती है।

सहायक कलाकारों ने भी अपने-अपने किरदारों के साथ पूरा न्याय किया है, जिससे फिल्म की दुनिया और भी असली लगती है।

निष्कर्ष

'कबाड़ - द कॉइन' एक छोटी फिल्म हो सकती है, लेकिन इसका दिल और इसका संदेश बहुत बड़ा है। यह एक सोचने पर मजबूर करने वाली, दिल को छू लेने वाली और ईमानदारी से बनाई गई फिल्म है। वरदराज स्वामी ने साबित कर दिया है कि एक अच्छा कहानीकार कबाड़ में भी खज़ाना ढूंढ सकता है। अगर आप लीक से हटकर, सार्थक और भावनात्मक रूप से जुड़ने वाले सिनेमा के शौक़ीन हैं, तो 'कबाड़ - द कॉइन' आपके लिए एक बेशकीमती तोहफ़ा है, जिसे आपको ज़रूर देखना चाहिए।









 

Manjhi the Mountain Man





'Manjhi' - When Passion Brought a Mountain to its Knees! 

Cinema is not just entertainment, but also inspiration, and 'Manjhi: The Mountain Man' is a perfect testament to this truth.

 It brings to the screen the incredible story of Dashrath Manjhi, which proves that in the face of human spirit, even a mountain can be dwarfed.

 Nawazuddin Siddiqui doesn't just play the character of Manjhi; he becomes him. You can see that same madness and intense passion in his eyes.

 This film is a love story of a man who, for his wife, spent 22 years carving a path through a mountain with only a hammer and a chisel. 

The film's dialogue written by Varadraj SWami , "Jab tak todenge nahi, tab tak chhodenge nahi," (Until I break it, I won't quit) is not just a line; it has become an anthem of unwavering determination. 

This story holds a mirror to systemic apathy and the struggle of one man standing alone against it. 

Ketan Mehta's direction captures the very soul of the story, transporting us to that small, rugged village in Bihar. 

This isn't just a biopic; it's an inspiring saga that teaches us that with true dedication, nothing is impossible. 

Every frame of the film tells a story of Manjhi's sweat, tears, and courage, and it will leave you deeply moved and shaken. If you are looking for a film that fills you with courage and hope, then 'Manjhi' is a must-watch for you.










 

फिल्म की कहानी के लिए सबसे महत्वपूर्ण 6 चीजें क्या हैं ?


  varadraj Swami

एक फिल्म की कहानी किसी इमारत की तरह होती है। अगर नींव और ढांचा मज़बूत नहीं है, तो बाहरी सजावट कितनी भी अच्छी क्यों न हो, इमारत ढह जाएगी।

फिल्म की कहानी के लिए कुछ चीज़ें सिर्फ़ ज़रूरी नहीं, बल्कि अनिवार्य हैं। ये कहानी के वो स्तंभ हैं, जिनके बिना एक अच्छी फिल्म का बनाना लगभग नामुमकिन है।

1. एक मज़बूत किरदार (A Strong Character) - कहानी का दिल होता है

सबसे ज़रूरी चीज़ है एक मजबूत किरदार । दर्शक कहानी से नहीं, किरदार से जुड़ते हैं। अगर दर्शक आपके हीरो की परवाह नहीं करते, तो वे फिल्म की परवाह भी नहीं करेंगे।

एक मज़बूत किरदार में क्या होता है?

  • जुड़ाव (Relatability): किरदार का परफेक्ट होना ज़रूरी नहीं है। बल्कि, उसकी कमज़ोरियाँ, उसका डर, उसकी गलतियाँ उसे ज़्यादा मानवीय और भरोसेमंद बनाती हैं। दर्शक को लगना चाहिए, "हाँ, मैं इस इंसान को समझ सकता हूँ।" (उदाहरण: Jab we met 'जब वी मेट' की Geeta गीत या  3 Idiots '3 इडियट्स' का Rancho रैंचो)
  • एक स्पष्ट लक्ष्य (A Clear Goal): किरदार कुछ चाहता है। यह कुछ भी हो सकता है—प्यार, बदला, इज़्ज़त, पैसा, या सिर्फ घर वापस जाना। यह लक्ष्य ही कहानी को आगे बढ़ाता है।
  • बदलाव का सफ़र (Character Arc): यह सबसे महत्वपूर्ण है। फिल्म की शुरुआत का किरदार और अंत का किरदार एक जैसा नहीं होना चाहिए। कहानी के संघर्षों से गुज़रकर उसमें कोई बदलाव आना चाहिए—वह मज़बूत, समझदार या एक बेहतर इंसान बनना चाहिए (या कभी-कभी बदतर भी)।
  • लक्ष्य बाहरी या आंतरिक हो सकता है:
  • बाहरी (External): "मुझे चोर को पकड़ना है।" (Dhoom धूम )
  • आंतरिक (Internal): "मुझे अपने डर पर काबू पाना है।" (Queen क्वीन )
  • इच्छा मज़बूत होनी चाहिए: हीरो को वह चीज़ इतनी शिद्दत से चाहिए कि वह उसके लिए कुछ भी करने को तैयार हो। अगर उसकी इच्छा कमज़ोर होगी, तो दर्शक सोचेंगे, "अरे, छोड़ो भी, इतना क्या परेशान होना!"
  • किरदार बनाम किरदार (Hero vs. Villain): सबसे आम। राम के सामने रावण। ( Bahubali बाहुबली)
  • किरदार बनाम समाज (Character vs. Society): हीरो समाज के नियमों या सोच के ख़िलाफ़ लड़ता है। (Pink पिंक, Article 15 आर्टिकल 15)
  • किरदार बनाम प्रकृति (Character vs. Nature): बाढ़, तूफ़ान या किसी आपदा से संघर्ष। (Kedarnath केदारनाथ)
  • किरदार बनाम ख़ुद (Character vs. Self): हीरो का सबसे बड़ा दुश्मन उसका अपना डर, उसकी आदतें या उसकी सोच होती है। यह सबसे गहरा संघर्ष होता है। (Sitare zamin par सितारे जमीं पर )
नतीजा जितना भयानक होगा, कहानी उतनी ही रोमांचक होगी।
  • कमज़ोर दांव: "अगर हीरो रेस नहीं जीता, तो उसे दुख होगा।" (ठीक है, पर ज़्यादा मज़ा नहीं आएगा)।
  • मज़बूत दांव: "अगर हीरो रेस नहीं जीता, तो उसके गाँव की ज़मीन छीन ली जाएगी और सब बेघर हो जाएँगे।" (Lagan लगान)
  • एक्ट 1: शुरुआत (The Setup): हम किरदारों से मिलते हैं, उनकी दुनिया देखते हैं और एक घटना (Inciting Incident) होती है जो कहानी शुरू करती है।
  • एक्ट 2: मध्य (The Confrontation): हीरो अपने लक्ष्य की ओर बढ़ता है, लेकिन बाधाएं बढ़ती जाती हैं। उसे सफलता और असफलता दोनों मिलती है। यहाँ कहानी का सबसे निचला बिंदु (Lowest Point) आता है, जहाँ लगता है सब ख़त्म हो गया।
  • एक्ट 3: अंत (The Resolution): कहानी अपने क्लाइमेक्स पर पहुँचती है। हीरो अपनी सबसे बड़ी बाधा का सामना करता है। अंत में, या तो वह जीतता है या हारता है, और कहानी एक अंजाम तक पहुँचती है।
  • 3Idiots 3 इडियट्स की कहानी इंजीनियरिंग छात्रों के बारे में है, लेकिन उसका संदेश है—"अपनी काबिलियत के पीछे भागो, कामयाबी झक मारकर पीछे आएगी।"
  • Dangal दंगल की कहानी कुश्ती के बारे में है, लेकिन उसका संदेश लैंगिक समानता (Gender Equality) पर है।

एक भरोसेमंद किरदार (दिल), जो एक मज़बूत इच्छा (इंजन) के साथ अपने लक्ष्य की ओर बढ़ता है, लेकिन उसे खतरनाक बाधाओं (ड्रामा) का सामना करना पड़ता है, जहाँ दांव पर सब कुछ लगा होता है (जान), और यह सब एक आकर्षक ढांचे (ढांचा) में पेश किया जाता है, जो अंत में एक गहरा संदेश (आत्मा) छोड़ जाता है।
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2. एक साफ़ लक्ष्य और मज़बूत इच्छा (A Clear Goal and Strong Desire) - कहानी का इंजन होता है

जैसा कि ऊपर बताया गया, किरदार कुछ चाहता है। यह "चाहत" या "लक्ष्य" कहानी का इंजन है। इसी के लिए हीरो पूरी फिल्म में भाग-दौड़ करता है।

3. संघर्ष और बाधाएं (Conflict and Obstacles) - कहानी का ड्रामा

बिना संघर्ष के कोई कहानी नहीं होती। अगर हीरो को जो चाहिए, वह आसानी से मिल जाए, तो फिल्म 10 मिनट में खत्म हो जाएगी और बेहद बोरिंग होगी।

संघर्ष कई तरह का हो सकता है:

बाधाएं हीरो को तोड़ती हैं, उसे परखती हैं और उसे बदलने पर मजबूर करती हैं।

4. दांव पर क्या लगा है? (What are the Stakes?) - कहानी की जान

यह वह सवाल है, जो दर्शकों को अपनी सीट से बांधकर रखता है। इसका मतलब है: "अगर हीरो असफल हुआ, तो क्या होगा?"

दांव जान, इज़्ज़त, प्यार या किसी सपने का हो सकता है। दांव जितना बड़ा होगा, दर्शकों की धड़कनें उतनी ही तेज़ होंगी।

5. एक आकर्षक संरचना (An Engaging Structure) - कहानी का ढांचा

कहानी की घटनाओं को एक ख़ास क्रम में रखना ही संरचना है। घटनाओं का सही क्रम दर्शकों की भावनाओं को नियंत्रित करता है—कब हंसाना है, कब रुलाना है, और कब हैरान करना है।

सबसे आम संरचना तीन-अंक (Three-Act Structure) है:

6. एक गहरा संदेश (A Deeper Theme) - कहानी की आत्मा

एक अच्छी फिल्म सिर्फ़ घटनाओं का सिलसिला नहीं होती। वह अपने पीछे एक विचार या संदेश छोड़ जाती है। यह कहानी की आत्मा है।

यह संदेश सीधे-सीधे भाषण देकर नहीं, बल्कि कहानी और किरदारों के सफ़र के माध्यम से दिखाया जाना चाहिए।

निष्कर्ष

एक यादगार फिल्म की कहानी इन 6 चीज़ों का मिश्रण होती है:

फिल्मों की कहानीयों में और टीवी या वेब सीरीज कि कहानियों में क्या अंतर है ?


 varadraj Swami 

फ़ॉर्मेट ही कहानी की किस्मत तय करता है। फिल्मों कि कहानियों का लेखन और टीवी सीरीज या वेब सीरीज के लिए कहानियों का लेखन बिल्कुल भिन्न है | दोनों के लिए  कहानी कहने का तरीक़ा मौलिक रूप से एकदम अलग होता है ।
हम इसे आसानी से ऐसे समझ सकते हैं
फिल्म लिखना एक 100 मीटर की दौड़ (Sprint) है, जबकि एक सीरीज़ लिखना एक मैराथन (Marathon) है।
दोनों में गति, गहराई और संरचना का पूरा खेल ही बदल जाता है ।

  • फिल्म:
  • संरचना: फिल्म की कहानी आमतौर पर तीन-अंक संरचना (Three-Act Structure) पर आधारित होती है—शुरुआत, मध्य और अंत। सब कुछ 2 से 3 घंटों के अंदर समेटना होता है।
  • गति: इसकी गति बहुत तेज़ और कसी हुई होती है। हर सीन का एक मकसद होता है—कहानी को आगे बढ़ाना। यहाँ भटकाव या गैर-ज़रूरी दृश्यों के लिए कोई जगह नहीं होती। दर्शक एक ही बैठक में पूरी कहानी का अनुभव करता है।
  • टीवी/वेब सीरीज़:
  • संरचना: सीरीज़ की संरचना एपिसोडिक (Episodic) होती है। इसमें एक बड़ा, सीज़न-भर चलने वाला आर्क होता है, और हर एपिसोड का अपना एक छोटा आर्क (शुरुआत, मध्य, अंत) भी होता है।
  • गति: इसकी गति धीमी और विस्तृत हो सकती है। कहानी को 8-10 घंटों (या उससे भी ज़्यादा) में फैलाया जाता है, इसलिए यहाँ किरदारों और उसकी दुनिया को स्थापित करने के लिए भरपूर समय मिलता है। कुछ एपिसोड कहानी को धीरे-धीरे आगे बढ़ाते हैं, जबकि कुछ सिर्फ़ किरदारों की भावनाओं पर केंद्रित हो सकते हैं।
  • फिल्म:
  • एक फिल्म में, मुख्य किरदार का सफ़र (Character Arc) एक मुख्य संघर्ष के इर्द-गिर्द घूमता है। हमें उसके जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा दिखाया जाता है जिसमें वह बदलता है या बदलाव लाने कि कोशिश करता है । किरदारों का विकास तेज़ी से होता है। सहायक किरदारों को ज़्यादा गहराई से दिखाने का समय नहीं मिलता।
  • टीवी/वेब सीरीज़:
  • यह सीरीज़ की सबसे बड़ी ताकत है। यहाँ किरदारों की परतों को धीरे-धीरे खोलने का मौका मिलता है। हम उनके अतीत, उनकी आदतों, उनके डर और उनकी छोटी-छोटी खुशियों को विस्तार से देख सकते हैं।
  • उदाहरण: आश्रम वेब सीरीज में एक साधारण आदमी मोंटी सिंह का काशीपुर वाले निर्मल बाबा बनते हुए दिखने के लिए कई एपिसोड में दिखाया गया है | आश्रम 4 सीजन की सीरीज है | निर्मल बाबा के कुकर्मों का सफ़र 4  सीज़न तक धीरे-धीरे दिखाया गया है। यह एक फिल्म में संभव नहीं था। यहाँ सहायक किरदार भी मुख्य किरदारों जितने महत्वपूर्ण हो सकते हैं और उनके अपने सब-प्लॉट होते हैं।
  • फिल्म:
  • इसमें एक मुख्य कहानी (A-Plot) होती है जो पूरी फिल्म पर हावी रहती है। एक या दो छोटी उप-कहानियाँ (B-Plots) हो सकती हैं, लेकिन वे भी मुख्य कहानी को ही सहारा देती हैं।
  • टीवी/वेब सीरीज़:
  • इसमें कई उप-कहानियों (Subplots) को एक साथ चलाने की गुंजाइश होती है। एक सीज़न में एक मुख्य आर्क हो सकता है, लेकिन हर एपिसोड में अलग-अलग किरदारों से जुड़ी कई छोटी-छोटी कहानियाँ चलती रहती हैं। यह कहानी की दुनिया को ज़्यादा बड़ा और वास्तविक महसूस कराता है।
  • फिल्म:
  • फिल्म का अंत आमतौर पर निर्णायक और बंद (Closed Ending) होता है। कहानी ख़त्म होती है, संघर्ष सुलझ जाता है, और दर्शकों को एक संतोषजनक अंत मिलता है।
  • टीवी/वेब सीरीज़:
  • इसके अंत कई स्तरों पर होते हैं:
1.    एपिसोड का अंत: हर एपिसोड का अंत अक्सर एक 'क्लिफहैंगर' (Cliff-hanger) पर होता है, ताकि दर्शक अगला एपिसोड देखने के लिए उत्सुक रहें।
2.    सीज़न का अंत: सीज़न का अंत उस सीज़न की मुख्य कहानी को तो सुलझा सकता है, लेकिन अक्सर एक नया, बड़ा सवाल या संघर्ष खड़ा कर देता है, ताकि दर्शक अगले सीज़न का इंतज़ार करें। यह खुला अंत (Open-ended) होता है।
  • फिल्म:
  • एक फिल्म आमतौर पर एक या दो केंद्रीय विषयों पर ध्यान केंद्रित करती है और उन्हें प्रभावी ढंग से पेश करती है।
  • टीवी/वेब सीरीज़:
  • लंबे समय के कारण, एक सीरीज़ कई जटिल सामाजिक, राजनीतिक या दार्शनिक विषयों को गहराई से छू सकती है। यह किरदारों के माध्यम से नैतिकता के भूरे क्षेत्रों (Grey Areas) को बेहतर ढंग से दिखा सकती है।
तुलनात्मक तालिका

मापदंड

फिल्म (Film)

टीवी/वेब सीरीज़ (Series)

अवधि

90-180 मिनट

6-10+ घंटे प्रति सीजन

संरचना

तीन-अंक संरचना (Three-Act)

एपिसोडिक, सीजन-लॉन्ग आर्क

गति

तेज़ और कसी हुई

धीमी और विस्तृत

किरदार

एक मुख्य सफ़र (Arc)

गहरा, बहु-आयामी विकास

कहानी

एक मुख्य प्लॉट

मुख्य प्लॉट + कई उप-प्लॉट

अंत

निर्णायक और बंद (Closed)

एपिसोड में क्लिफहैंगर, सीजन में खुला (Open-ended)

लक्ष्य

एक संतोषजनक अनुभव देना

दर्शकों को बार-बार वापस लाना

निष्कर्ष
  • "क्या यह कहानी एक असाधारण घटना के बारे में है, जिसे 2 घंटे में कहा जा सकता है?" — तो यह फिल्म के लिए है।
  • "क्या यह कहानी एक दुनिया और उसमें रहने वाले जटिल किरदारों के बारे में है, जिन्हें जानने-समझने में समय लगेगा?" — तो यह सीरीज़ के लिए है।

1. संरचना और गति (Structure and Pacing)

2. किरदार का विकास (Character Development)

3. मुख्य कहानी और उप-कहानियाँ (Plot and Subplots)

4. अंत (The Ending)

5. विषय और गहराई (Theme and Depth)

जब आपके पास कोई आइडिया आए, तो सबसे पहले ख़ुद से पूछें:

सही फ़ॉर्मेट चुनना आपकी कहानी को सफल बनाने की दिशा में पहला और सबसे महत्वपूर्ण कदम है।

कहानी लेखन और फिल्म की कहानी लेखन में क्या अंतर है


 
varadraj swami 

एक बहुत ही महत्वपूर्ण और शानदार सवाल है। कहानी लेखन और फिल्म के लिए कहानी (यानी पटकथा) लेखन  में क्या अंतर है | सबसे पहले ये समझें की दोनों रचनात्मक काम हैं, लेकिन इनके उद्देश्य, प्रारूप और नियमों में ज़मीन-आसमान का फ़र्क है।

  • कहानी (Story): यह एक खूबसूरत पेंटिंग की तरह है, जिसे आप देखते हैं और महसूस करते हैं।
  • पटकथा (Screenplay): यह उस बिल्डिंग का आर्किटेक्चरल ब्लू प्रिंट (नक्शा) है, जिसे देखकर मज़दूर, इंजीनियर और डिज़ाइनर पूरी बिल्डिंग बनाते हैं।
चलिए, अब इसे विस्तार से समझते हैं।
कहानी लेखन (Story Writing - उपन्यास, लघुकथा)
इसका मुख्य उद्देश्य पाठक (Reader) को एक अनुभव देना है। लेखक शब्दों के माध्यम से पाठक के दिमाग़ में एक दुनिया बनाता है।
मुख्य विशेषताएं:
1.    माध्यम - शब्द: लेखक का एकमात्र हथियार शब्द हैं। वह शब्दों से ही माहौल, भावनाएं और विचार पैदा करता है।
2.    आंतरिक विचार (Internal Monologue): यह सबसे बड़ा अंतर है। कहानी में आप सीधे-सीधे लिख सकते हैं कि किरदार क्या सोच रहा है या महसूस कर रहा है।
o   उदाहरण: "राज ने लिफ़ाफ़ा खोला और उसका दिल बैठ गया। 'यह मेरी आख़िरी उम्मीद थी,' उसने सोचा। 'अब मैं पिताजी को क्या मुँह दिखाऊँगा?'"
3.    विस्तृत वर्णन: लेखक किसी भी चीज़ का वर्णन कर सकता है—खुशबू, स्वाद, स्पर्श, और ऐसी भावनाएं जिन्हें देखा नहीं जा सकता।
o   उदाहरण: "कमरे में पुरानी किताबों और सीलन की मिली-जुली गंध फैली हुई थी।"
4.    समय की स्वतंत्रता: लेखक आसानी से लिख सकता है, "पाँच साल बीत गए" या "उसका बचपन बहुत मुश्किलों में गुज़रा था।" इसे बताने के लिए उसे कोई दृश्य दिखाने की ज़रूरत नहीं है।
5.    लेखक की आवाज़: लेखक सीधे पाठक से बात कर सकता है, अपनी राय दे सकता है या चीज़ों को समझा सकता है।
6.    प्रारूप (Format): इसका कोई सख़्त प्रारूप नहीं होता। पैराग्राफ, अध्याय और संवाद लिखने के अपने तरीक़े हो सकते हैं।
पटकथा लेखन (Screenplay Writing - फिल्म के लिए)
इसका मुख्य उद्देश्य फिल्म की पूरी टीम (निर्देशक, अभिनेता, कैमरामैन, एडिटर आदि) को यह बताना है कि परदे पर क्या दिखेगा और क्या सुनाई देगा। यह पढ़ने के लिए नहीं, बल्कि एक फिल्म बनाने के लिए एक गाइडबुक है।
मुख्य विशेषताएं:
1.    माध्यम - दृश्य और ध्वनि (Visuals and Sound): पटकथा लेखक सिर्फ़ वही लिख सकता है जिसे कैमरा देख सकता है और माइक्रोफ़ोन सुन सकता है।
2.    दिखाओ, बताओ मत (Show, Don't Tell): यह पटकथा लेखन का सुनहरा नियम है। आप यह नहीं लिख सकते कि किरदार दुखी है; आपको दिखाना होगा कि वह दुखी कैसे है।
o   ऊपर वाले उदाहरण का पटकथा संस्करण:
§  राज कांपते हाथों से लिफ़ाफ़ा फाड़ता है। वह ख़त पढ़ता है। उसके चेहरे की मुस्कान गायब हो जाती है। उसकी आँखें भर आती हैं। वह कुर्सी पर धम्म से बैठ जाता है। ख़त उसके हाथ से छूटकर ज़मीन पर गिर जाता है।
3.    सख़्त प्रारूप (Strict Format): पटकथा का एक विश्वव्यापी प्रारूप होता है।
o   सीन हेडिंग (Scene Heading): बताता है कि सीन अंदर किसी रूम का है  (INT.) है या बाहर खुली सड़क का है  (EXT.), लोकेशन क्या है, और समय (दिन/रात) क्या है। (जैसे: INT. राज का कमरा - दिन)
o   एक्शन लाइन (Action Line): इसमें बताया जाता है कि क्या हो रहा है। यह हमेशा वर्तमान काल (Present Tense) में लिखा जाता है।
o   किरदार का नाम (Character Name): संवाद बोलने वाले का नाम।
o   संवाद (Dialogue): किरदार जो बोलता है।
4.    कोई आंतरिक विचार नहीं: आप सीधे यह नहीं लिख सकते कि किरदार क्या सोच रहा है। अगर यह दिखाना ज़रूरी है, तो आपको वॉयसओवर (Voice-over) का इस्तेमाल करना होगा या किसी दूसरे किरदार से बुलवाना होगा।
5.    हर पन्ना एक मिनट: मोटे तौर पर, पटकथा का एक पन्ना स्क्रीन पर लगभग एक मिनट के बराबर होता है। इसलिए, लेखन बहुत कसा हुआ और सटीक होता है।
तुलनात्मक तालिका: कहानी बनाम पटकथा

मापदंड

कहानी लेखन (Story Writing)

पटकथा लेखन (Screenplay Writing)

उद्देश्य

पाठक को पढ़कर आनंद देना।

फिल्म निर्माण टीम के लिए एक तकनीकी गाइड।

दर्शक

आम पाठक (Reader)

निर्देशक, अभिनेता, निर्माता और पूरी क्रू।

माध्यम

केवल शब्द।

दृश्य (Visuals) और ध्वनि (Sound)

किरदार की भावनाएं

सीधे बता सकते हैं ("वह दुखी था")।

एक्शन और संवाद से दिखाना पड़ता है ("उसकी आँखें नम थीं")।

प्रारूप (Format)

लचीला (Flexible)

बहुत सख़्त और मानकीकृत (Standardized)

काल (Tense)

आमतौर पर भूतकाल (Past Tense)

हमेशा वर्तमान काल (Present Tense)

लेखक की स्वतंत्रता

विचारों, भावनाओं, गंध, स्वाद का वर्णन करने की पूरी आज़ादी।

सिर्फ़ जो देखा और सुना जा सके, वही लिखने की सीमा।

निष्कर्ष
एक कहानी एक विचार या आत्मा की तरह है। यह बताती है कि क्या हुआ
वहीं, एक पटकथा उस आत्मा को दिया गया एक शरीर है। यह बताती है कि दर्शक उस कहानी को परदे पर कैसे देखेंगे और सुनेंगे

हम इसे ऐसे समझ सकते हैं

अक्सर महान फिल्में अच्छी कहानियों या उपन्यासों से बनती हैं, लेकिन उस कहानी को फिल्म बनाने के लिए उसे पटकथा के नियमों और प्रारूप में ढालना ही एक पटकथा लेखक का असली काम है। यह एक कला भी है और एक तकनीक भी।

How to write Screen play


 

पटकथा (स्क्रीनप्ले) लिखने की शुरुआत कैसे करें

 Varadraj Swami

पटकथा (स्क्रीनप्ले) लिखना एक रचनात्मक और संरचित प्रक्रिया है। यहां बताया गया है कि आप इसकी शुरुआत कैसे कर सकते हैं:

1. विचार (आइडिया) विकसित करें

सबसे पहले, आपको एक मजबूत विचार की ज़रूरत होगी। यह किसी कहानी, घटना, चरित्र, या विषय पर आधारित हो सकता है जो आपको प्रेरित करता है।

  • क्या कहानी है? अपनी कहानी का मूल विचार एक-दो वाक्यों में बताएं (इसे लॉगलाइन कहते हैं)।

  • मुख्य पात्र कौन है? आपके नायक (प्रोटैगोनिस्ट) के लक्ष्य क्या हैं, और वह किन बाधाओं का सामना करता है?

  • क्या बाधाएं हैं? कहानी में कौन सी चुनौतियां या विरोधी (एंटागोनिस्ट) हैं?

  • कहानी की शैली क्या होगी? क्या यह कॉमेडी, ड्रामा, थ्रिलर, या कुछ और होगी?

2. रूपरेखा (आउटलाइन) या सिनॉप्सिस बनाएं

एक बार जब आपके पास एक विचार हो जाए, तो उसे व्यवस्थित करना महत्वपूर्ण है।

  • सिनॉप्सिस: अपनी पूरी कहानी का एक संक्षिप्त सारांश लिखें, जिसमें शुरुआत, मध्य और अंत शामिल हों। यह लगभग एक से दो पेज का हो सकता है।

  • स्टेप आउटलाइन/बीट शीट: अपनी कहानी के मुख्य मोड़ (plot points) और घटनाओं को क्रमबद्ध तरीके से लिखें। हॉलीवुड में अक्सर थ्री-एक्ट स्ट्रक्चर का इस्तेमाल किया जाता है:

    • एक्ट 1 (स्थापना): पात्रों और दुनिया का परिचय, समस्या की शुरुआत।

    • एक्ट 2 (टकराव): नायक संघर्षों का सामना करता है, बाधाओं को पार करने की कोशिश करता है।

    • एक्ट 3 (समाधान): कहानी का चरमोत्कर्ष (क्लाइमेक्स) और संकल्प।

  • चरित्र विकास (Character Development): अपने मुख्य पात्रों के बारे में विस्तार से लिखें – उनकी पृष्ठभूमि, प्रेरणाएं, कमजोरियां, और विकास।

3. पटकथा लेखन सॉफ्टवेयर का उपयोग करें

पटकथा लेखन के लिए विशेष सॉफ्टवेयर का उपयोग करना बहुत मददगार होता है। यह सही फॉर्मेटिंग सुनिश्चित करता है, जो उद्योग मानक है।

  • फ्री विकल्प: Celtx, WriterDuet (कुछ सुविधाएं मुफ्त)।

  • पेड विकल्प: Final Draft (पेशेवरों द्वारा व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है), Fade In।

4. फॉर्मेटिंग समझें

एक पटकथा की विशिष्ट फॉर्मेटिंग होती है, जिसमें दृश्य शीर्षक (Scene Heading), एक्शन (Action), चरित्र का नाम (Character Name), संवाद (Dialogue), और अभिभावक (Parenthetical) शामिल होते हैं। इसे सीखना महत्वपूर्ण है।

  • दृश्य शीर्षक (Scene Heading): INT./EXT. LOCATION - DAY/NIGHT (जैसे: INT. COFFEE SHOP - DAY)

  • एक्शन (Action): दृश्य में क्या हो रहा है, इसका विवरण।

  • चरित्र का नाम (Character Name): संवाद से ठीक ऊपर, केंद्र में।

  • संवाद (Dialogue): चरित्र के नाम के नीचे।

5. पहला ड्राफ्ट लिखें

अब सबसे महत्वपूर्ण कदम आता है: लिखना शुरू करें!

  • पूर्णता पर ध्यान न दें: पहले ड्राफ्ट में सिर्फ कहानी को कागज पर उतारने पर ध्यान दें। व्याकरण, वर्तनी, या सही शब्दों के चुनाव की चिंता न करें।

  • नियमित रहें: प्रतिदिन थोड़ा-थोड़ा लिखने की कोशिश करें।

  • विचलित न हों: लिखते समय ध्यान केंद्रित रखें।

6. प्रतिक्रिया प्राप्त करें और पुनरीक्षण करें

एक बार जब आपका पहला ड्राफ्ट पूरा हो जाए, तो इसे कुछ भरोसेमंद लोगों (जो रचनात्मक प्रतिक्रिया दे सकें) को पढ़ने के लिए दें।

  • फीडबैक पर विचार करें: अपनी पटकथा को बेहतर बनाने के लिए मिली प्रतिक्रिया का उपयोग करें।

  • फिर से लिखें (Rewrite): पटकथा लेखन का अधिकांश काम फिर से लिखने (Rewriting) में होता है। पहले ड्राफ्ट को पॉलिश करें, दृश्यों को कसें, संवादों को बेहतर बनाएं, और कहानी को मजबूत करें।

इन चरणों का पालन करके, आप अपनी पहली पटकथा लिखने की शुरुआत कर सकते हैं। याद रखें, अभ्यास और धैर्य महत्वपूर्ण हैं!

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