Monday, June 30, 2025







 'कबाड़ - द कॉइन' फिल्म समीक्षक, लेखक-निर्देशक वरदराज स्वामी की फिल्म 'कबाड़ - द कॉइन' की एक विस्तृत और सकारात्मक समीक्षा प्रस्तुत करता हूँ।


फिल्म समीक्षा: 'कबाड़ - द कॉइन' - कबाड़ में छिपी इंसानी रिश्तों की बेशकीमती कहानी

रेटिंग: ★★★★☆ (4/5)

आज के दौर में जब सिनेमा बड़े बजट, भव्य सेट्स और स्टार पावर पर निर्भर हो गया है, तब 'कबाड़ - द कॉइन' एक ताज़ी हवा के झोंके की तरह आती है। यह फिल्म इस बात का सशक्त प्रमाण है कि एक अच्छी कहानी को कहने के लिए बड़े तामझाम की नहीं, बल्कि एक मज़बूत इरादे और संवेदनशील नज़रिए की ज़रूरत होती है। लेखक-निर्देशक वरदराज स्वामी ने एक साधारण से विचार को उठाकर उसे एक ऐसी यादगार कहानी में बदल दिया ہے, जो सिनेमाघरों से निकलने के बाद भी आपके साथ रह जाती है।

कहानी: एक सिक्के के दो पहलू

फिल्म की कहानी कबाड़ी का काम करने वाले एक सीधे-सादे लड़के बंधन (विवान शाह) के इर्द-गिर्द घूमती है। उसकी ज़िंदगी तब एक नाटकीय मोड़ लेती है जब उसे कबाड़ में 18वीं सदी का एक बेशकीमती 'राम-सिया' सिक्का मिलता है। यह सिक्का सिर्फ धातु का एक टुकड़ा नहीं, बल्कि इंसानी भावनाओं, लालच, प्रेम और नैतिकता की कसौटी बन जाता है। एक तरफ उसका प्यार रोमा (ज़ोया अफरोज) है, तो दूसरी तरफ उस सिक्के के पीछे पड़े लोग। कहानी बड़ी ही खूबसूरती से दिखाती है कि कैसे एक साधारण सा सिक्का असाधारण तूफ़ान खड़ा कर सकता है और लोगों के असली चेहरे सामने ला सकता है।

लेखन और निर्देशन: सादगी में छिपी गहराई

वरदराज स्वामी का निर्देशन और लेखन इस फिल्म की सबसे बड़ी ताकत है।

  • लेखन: पटकथा लेखक वरदराज स्वामी एवं शाहजाद अहमद की स्क्रीनप्ले







    बेहद कसी हुई और यथार्थ के करीब है। स्वामी ने लालच और मासूमियत के बीच की महीन रेखा को बड़ी ही कुशलता से दिखाया है। संवाद ज़मीनी और सच्चे हैं, जो किरदारों को और भी विश्वसनीय बनाते हैं। कहानी का सबसे खूबसूरत पहलू यह है कि यह किसी को जज नहीं करती; यह बस परिस्थितियों को सामने रखती है और दर्शकों को सोचने पर मजबूर करती है कि असली खज़ाना क्या है—वो सिक्का या इंसानी रिश्ते?

  • निर्देशन: एक निर्देशक के तौर पर स्वामी की पकड़ काबिले-तारीफ़ है। उन्होंने कहानी को बिना किसी मेलोड्रामा के, बड़ी ही ईमानदारी और सादगी से पेश किया है। उन्होंने किरदारों की दुनिया को इतने वास्तविक ढंग से रचा है कि आप खुद को उस माहौल का हिस्सा महसूस करने लगते हैं। फिल्म की गति बिल्कुल सही है, जो धीरे-धीरे तनाव और उत्सुकता को बढ़ाती है। यह उनके सधे हुए निर्देशन का ही कमाल है कि एक छोटे से सिक्के की कहानी इतनी आकर्षक और रोमांचक लगती है।

अभिनय: किरदारों में बसी जान

अभिनय के मोर्चे पर, 'कबाड़ - द कॉइन' चमकती है।

  • विवान शाह ने बंधन के किरदार में जान डाल दी है। उन्होंने एक आम, थोड़े लालची लेकिन दिल के अच्छे लड़के की भूमिका को पूरी ईमानदारी से निभाया है। उनकी आँखों में एक आम इंसान की हसरतें, उसका डर और उसकी उलझन साफ़ दिखती है। यह उनके करियर के बेहतरीन प्रदर्शनों में से एक है।

  • ज़ोया अफरोज ने रोमा के किरदार में ख़ूबसूरती और मज़बूती, दोनों का सही संतुलन दिखाया है। वह सिर्फ एक 'लव इंटरेस्ट' बनकर नहीं रह जातीं, बल्कि कहानी का एक अहम हिस्सा हैं। विवान के साथ उनकी केमिस्ट्री सहज और प्यारी लगती है।

सहायक कलाकारों ने भी अपने-अपने किरदारों के साथ पूरा न्याय किया है, जिससे फिल्म की दुनिया और भी असली लगती है।

निष्कर्ष

'कबाड़ - द कॉइन' एक छोटी फिल्म हो सकती है, लेकिन इसका दिल और इसका संदेश बहुत बड़ा है। यह एक सोचने पर मजबूर करने वाली, दिल को छू लेने वाली और ईमानदारी से बनाई गई फिल्म है। वरदराज स्वामी ने साबित कर दिया है कि एक अच्छा कहानीकार कबाड़ में भी खज़ाना ढूंढ सकता है। अगर आप लीक से हटकर, सार्थक और भावनात्मक रूप से जुड़ने वाले सिनेमा के शौक़ीन हैं, तो 'कबाड़ - द कॉइन' आपके लिए एक बेशकीमती तोहफ़ा है, जिसे आपको ज़रूर देखना चाहिए।









 

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