Tuesday, July 1, 2025

एक सफल स्क्रिप्ट के लिए मनोवैज्ञानिक लेखन क्यों जरुरी है ? Why is psychological writing important for a successful script ?

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मनोवैज्ञानिक लेखन :- Varadraj Swami

पटकथा लेखक के रूप में, दृश्य विवरण के साथ कहानी की मनोवैज्ञानिक धाराओं में उतरने और पात्रों के आंतरिक भावनात्मक और बौद्धिक अनुभव में अंतर्दृष्टि को स्क्रिप्ट में जोड़ने की स्वतंत्रता होती है ।

यह कथात्मक आवाज के माध्यम से होता है। 

मनोवैज्ञानिक लेखन के तीन स्पर्श बिंदु (Three Touchpoints

✒️ A. दृष्टिकोण (Perspective):

Perspective: चरित्र की आंतरिक दुनिया में कथात्मक आवाज का दृष्टिकोण ।

  • कहानी किस नज़र से देखी जा रही है?
  • किसका दृष्टिकोण प्रमुख है — पात्र का, लेखक का, या दर्शक का?

🎬 उदाहरण: तारे ज़मीन पर
पूरी कहानी ईशान के मनोविज्ञान से जुड़ी है।
उसका डर, कल्पना, गुस्सा — सब कुछ उसकी आंखों से दिखाया गया है।


✒️ B. निकटता (Proximity):

Proximity: कथात्मक आवाज चरित्र की आंतरिक दुनिया से कितनी दूर/करीब है

  • कहानी पात्र के कितने पास से बताई गई है?
  • क्या दर्शक उसके मन की हलचल "महसूस" कर पा रहे हैं?

🎬 उदाहरण: डियर ज़िंदगी (2016)
काइरा की थैरेपी सेशन और उसकी निजी यादें
कैमरा, संवाद और ध्वनि — सब कुछ इतना "नज़दीक" है कि दर्शक खुद को उसी कुर्सी पर बैठा पाते हैं।


✒️ C. धारणा (Perception):.

Perception: चरित्र क्या महसूस कर रहा है, इसकी कथात्मक आवाज की व्याख्या ।

  • पात्र दुनिया को कैसे देखता है?
  • क्या वह भ्रम में है? क्या उसे सच समझ आ रहा है?

🎬 उदाहरण: ब्लैक (2005)
मिशेल (रानी मुखर्जी) की दुनिया में ध्वनि, स्पर्श और इशारों से ही सब होता है।
उसकी "धारणा" बाकी दुनिया से बिलकुल अलग है, और यही कहानी को खास बनाता है।


🎨 3. संवेदी जानकारी (Sensory Detail):

कहानी में Sensory Detail संवेदी जानकारी (दृश्यों, ध्वनियों, गंधों, स्वादों और बनावट) का इस तरह से उपयोग करना होता हैकि वह दर्शकों को क्षण का हिस्सा महसूस कराता है और यह प्रभावित करने में मदद करता है कि वे फिल्म देखते समय क्या महसूस करते हैं । यह भावनाओं को "दिखाने" का एक शक्तिशाली तरीका है, न कि केवल "बताने" का ।

यदि दर्शकों को भावनात्मक रूप से जोड़ना या प्रभावित करना है, तो  पटकथा में किसी ऐसे व्यक्ति का चरित्र दिखाना होगा जिसकी मुख्य चरित्र परवाह कर सके। प्राथमिक पात्रों को इतना अच्छी तरह से विकसित किया जाना चाहिए कि वे वास्तविक दुनिया से बाहर निकले हुए महसूस हों, जिसमें उनकी ज़रूरतें, प्रेरणाएँ, खामियाँ और डर शामिल हों जो उन्हें मानवीय बनाते हैं ।

दृश्य, ध्वनि, गंध, स्वाद, स्पर्शइनका उपयोग करके कहानी को "महसूस" कराना।

🎬 उदाहरण: द लंचबॉक्स (2013)
ईला का खाना, डब्बे की खुशबू, अकेलेपन की चुप्पी
ये सब दर्शकों को भावनात्मक रूप से जोड़ते हैं। संवाद कम हैं, पर भाव बहुत हैं।


💔 4. पात्र की त्रुटियाँ, डर, और खामियाँ (Flaws and Fears):

पात्र को "मानवीय" बनाने के लिए उसकी कमज़ोरियाँ ज़रूरी होती हैं। इससे दर्शक उसे परफेक्ट नहीं, "अपना सा" मानते हैं। मनोवैज्ञानिक लेखन का उपयोग केवल महत्वपूर्ण क्षणों में करना चाहिए ताकि दृश्य के भावनात्मक और मनोरंजन प्रभाव को अधिकतम किया जा सके ।

🎬 उदाहरण: कबाड़ द कॉइन  (2023 )
बंधन (विवान शाह ) एक ऐसा लड़का है जो खुद को हमेशा बहुत दबा कुचला गरीब झोपडपट्टी वाला महसूस करता है।
कबाड़ खरीदना उसकी मज़बूरी है ,पर जब उसे अचानक ढेर सारे सोने का कॉइन मिल जाता है तो फिर उसके सोचने का तरीका कैसे बदल जाता है, वो आत्मविश्वास से भर जाता है और वो हाई सोसाइटी की लड़की रोमा जिसे वो सपनों में प्यार करता था | एक दिन सच में वो रोमा को फुल कन्फ़ेडरेशन प्रोपोज कर देता है,अंत में वो टूट जाता है -पर रोमा को भूल नहीं पाता ।


🧭 5. चरित्र चाप (Character Arc) – परिवर्तन की यात्रा

परिभाषा:

एक Character Arc बताता है कि पात्र कथा के दौरान कैसे बदलते और विकसित होते हैं, जिसमें एक्ट वन का चरित्र एक्ट थ्री में अलग होता है । यह दर्शकों के साथ जुड़ने के लिए महत्वपूर्ण है। Character Arc को पीछे से डिजाइन किया जा सकता है, चरित्र के "बुल्सआई" अंत पर विचार करके, फिर यह देखकर कि वे एक्ट वन में कैसे शुरू होते हैं और उन्हें उस अंत तक पहुंचने के लिए क्या बदलना होगा । लक्ष्य शुरुआती और अंतिम बिंदुओं के बीच एक बड़ा अंतर बनाना है, जिससे यह असंभव लगे कि एक्ट वन का त्रुटिपूर्ण चरित्र महत्वपूर्ण बदलाव के बिना अंत तक पहुंच सके । कैसे कोई पात्र कहानी की शुरुआत में एक होता है, और अंत तक एक बिलकुल नया व्यक्ति बन जाता है।

🎬 उदाहरण:

फिल्म: स्वदेश (2004)

  • शुरुआत: मोहन एक NRI साइंटिस्ट है जो भारत से कटा हुआ है।
  • अंतत: वह गाँव में रहकर समाज की सेवा करने लगता है।
  • यह उसका भावनात्मक और वैचारिक परिवर्तन है।

✍️ 6. चरित्र चाप की योजना (Designing the Arc from the End)

कैसे करें:

1.       सोचिए, आपका पात्र अंत में कैसा इंसान बन जाएगा? (यानी उसका "बुल्सआई")

2.       फिर सोचिए — वह शुरुआत में कैसा था?

3.       उसके इस सफर में कौन-कौन से अनुभव, टकराव, फैसले उसे बदलेंगे?


📜 निष्कर्ष (Essence):

विषय

अर्थ (सरल भाषा में)

उदाहरण (हिंदी फिल्म)

चाहत बनाम ज़रूरत

बाहर क्या चाहता है बनाम अंदर क्या चाहिए

उड़ान, फॉरेस्ट गंप (हिंदी डब)

दृष्टिकोण

कहानी किसकी आंखों से देखी जा रही है

तारे ज़मीन पर

निकटता

दर्शक पात्र के कितने करीब है

डियर ज़िंदगी

धारणा

पात्र दुनिया को कैसे समझता है

ब्लैक

संवेदी जानकारी

दृश्य, गंध, ध्वनि से भावनाएँ दिखाना

द लंचबॉक्स

त्रुटियाँ व डर

पात्र की कमज़ोरियाँ जो उसे मानवीय बनाती हैं

कपूर एंड सन्स

चरित्र चाप (Arc)

पात्र की शुरुआत से अंत तक की आंतरिक परिवर्तन की यात्रा

स्वदेश, चक दे इंडिया

स्क्रिप्ट में सबटेक्स्ट क्या होता है What is subtext in the script ?


 स्क्रिप्ट में सबटेक्स्ट क्या होता है? Varadraj Swami

सबटेक्स्ट  संवाद या क्रिया के पीछे का अनकहा अर्थ है – जो लोग कहते और करते हैं उसके पीछे का वास्तविक अर्थ या इरादा ।  सबटेक्स्ट चरित्र के मन में जो कुछ है उसका 90% अनकहा हिस्सा दर्शाता है। उदाहरण के लिए, एक चरित्र जो रोने वाला है, उसका "मैं ठीक हूँ" कहना यह बताता है कि वह ठीक नहीं है । सबटेक्स्ट कहानी में अंतर्निहित प्रतीकवाद, विषय और संदेश को व्यक्त करने के लिए महत्वपूर्ण है । सबटेक्स्ट को "चरित्रों की अभिव्यक्ति के भीतर छुपे हुए अव्यक्त अभिव्यक्ति " के रूप में समझा जा सकता है। एक पंक्ति का अर्थ

"नहीं...!! मैं वापस नहीं जा रहा हूँ"

एक भागे हुए अपराधी द्वारा कहे जाने पर पूरी तरह से बदल जाता है जिसे फिर से पकड़ा जा रहा है । अनकही क्रियाएं, जैसे अंतरिक्ष में घूरना या बार बार दरवाजा की तरफ देखना, संवाद से परे दर्शकों को बहुत कुछ बता सकती हैं ।

🎭 स्क्रिप्ट में सबटेक्स्ट क्या होता है?

आइये कुछ उदाहरणों से सीखते हैं :-

सरल भाषा में कहें तो
सबटेक्स्ट वह "अनकही बात" होती है जो संवादों या क्रियाओं के पीछे छुपी होती है। यानी पात्र कुछ कहता है, लेकिन उसका मन या मंशा कुछ और होती है।

🔍 उदाहरण से समझिए:

संवाद:मैं ठीक हूँ।”
असल भाव: वह अंदर से टूट चुका है, पर वह इसे छुपा रहा है।

🎬 हिंदी फिल्मों से सबटेक्स्ट के उदाहरण:

1. ‘कभी अलविदा न कहना’ (2006)

  • सीन: रानी मुखर्जी और शाहरुख खान बेंच पर बैठे हैं। दोनों कहते हैं कि वे अपनी शादी से "खुश" हैं।
  • सबटेक्स्ट: उनके चेहरे, आँखें और लंबी चुप्पियाँ बताती हैं कि वो अंदर से अकेले और टूटे हुए हैं।

जो कहा नहीं गया, वही सबसे गहरी बात थी।

2. ‘तारे ज़मीन पर’ (2007)

  • सीन: ईशान का पिता कहता है – “हमने इसके लिए सब कुछ किया।”
  • सबटेक्स्ट: वह अपनी नाकामी को स्वीकार नहीं कर पा रहा और अपनी जिम्मेदारी से भाग रहा है।

3. ‘पीकू’ (2015)

  • सीन: अमिताभ बच्चन का किरदार बार-बार "शरीर" और "पेट" की बात करता है।
  • सबटेक्स्ट: असल में वह उम्र, अकेलेपन और अपनी बेटी के बग़ैर खुद को असहाय महसूस करने की बात कर रहा है।

💡 सबटेक्स्ट को कैसे पहचानें?

  • जब किरदार कुछ और कहता है, पर उसकी आँखें, हाव-भाव या चुप्पी कुछ और बताती हैं।
  • जब संवादों के बीच खाली जगह (silence) ज्यादा प्रभाव छोड़ती है।

✍️ सबटेक्स्ट कैसे लिखा जाता है?

1.       सीधा संवाद मत लिखिए।
जैसे: “मैं डर गया हूँ।”
इसे ऐसे लिखिए: “कोई बात नहीं... बस हवा थोड़ी ठंडी लग रही है।”

2.       पात्र की बॉडी लैंग्वेज पर ज़ोर दीजिए।
जैसे: बार-बार दरवाज़ा देखना, टेबल पर उंगलियाँ बजाना।

🧰 अन्य कथात्मक उपकरण (Narrative Devices) और उनके हिंदी उदाहरण:   Narrative Devices ऐसे तत्व हैं जो दर्शकों के लिए कहानी लेखक के इरादों को समझने में मदद करते हैं ।

1. 🎭 संकेत (Allusion): वास्तविक दुनिया के तत्वों के संकेत सांस्कृतिक संदर्भ प्रदान करके कहानी में गहराई और संदर्भ जोड़े जाते हैं जो दर्शकों के साथ प्रतिध्वनित होते हैं । कहानी में किसी प्रसिद्ध चीज़ या संदर्भ का इशारा करना।

उदाहरण:
फिल्म: मांझी द माउंटेन मैन (2015 )
संकेत: मुख्य चरित्र मांझी और पहाड़ के बीच दुश्मनी जोकि राम- रावण जैसा भाव है।
(कहा नहीं गया, पर दर्शकों को एहसास होता है)

2. 🗣शब्द चयन (Diction): चरित्र की आवाज, वातावरण स्थापित करने और समग्र मूड बनाने के लिए शब्दों का चुनाव, स्वर और शैली महत्वपूर्ण हैं । कैरेक्टर किस लहजे, भाषा या शब्दों में बात करता है – यह उसके बैकग्राउंड, मूड और व्यक्तित्व को दर्शाता है।

उदाहरण:
फिल्म: गैंग्स ऑफ वासेपुर
प्रत्येक किरदार की भाषा अलग है – कोई भोजपुरी, कोई मगही, कोई शुद्ध हिंदी में बात करता है।

3. 🪞 रूपक (Allegory):  एक साहित्यिक उपकरण के रूप में काम करता है, जोकि पात्र, घटनाएँ या अमूर्त विचारों, नैतिक गुणों या ऐतिहासिक घटनाओं का प्रतिनिधित्व करता है, अक्सर शाब्दिक व्याख्या से परे एक गहरा या प्रतीकात्मक अर्थ शामिल होता है । पूरी कहानी ही किसी गहरे विषय का प्रतीक बन जाए । द मैट्रिक्स एक उत्कृष्ट उदाहरण है जहाँ नकली वास्तविकता सामाजिक नियंत्रण और सत्य की खोज का रूपक है ।

उदाहरण:
फिल्म: आंखें (2002)
नेत्रहीनों से बैंक लुटवाना एक प्रतीक है –
रूपक:दुनिया के सारे अंधे निर्णय” और “सिस्टम की कमजोरी।” इस फिल्म का रूपक है |


·        4. ⚖️ विरोधाभास (Juxtaposition):  

·        दो विपरीत चीजों को एक साथ रखकर फर्क या भाव को गहरा करना । तनाव पैदा करने, विषयों को उजागर करने या चरित्र विकास को रेखांकित करने के लिए दो विरोधी चीजों को एक साथ रखना ।  संवाद की एकल पंक्तियों, दृश्यों, पात्रों या पूरे कथानक में उपयोग किया जाता है । द शॉशैंक रिडेम्प्शन जेल जीवन की कठोर वास्तविकताओं को आशा और मोचन के विषयों के साथ विरोधाभास करने का एक मजबूत उदाहरण है ।

·         

उदाहरण:
फिल्म: लगान (2001)
गाँव के किसान और अंग्रेज अफसर – एक क्रिकेट मैच में आमने-सामने।
यह केवल खेल नहीं, बल्कि सत्ता और सम्मान की टक्कर है।


🎯 निष्कर्ष (Summary):

तत्व

अर्थ (सरल शब्दों में)

उदाहरण (हिंदी फिल्म)

सबटेक्स्ट

जो कहा नहीं गया, लेकिन महसूस हुआ

"मैं ठीक हूँ" – (कभी अलविदा न कहना)

संकेत (Allusion)

किसी प्रसिद्ध चीज़ की ओर इशारा

जय-वीरू की दोस्ती (शोले)

शब्द चयन

पात्र कैसे बोलते हैं, उसका चयन

गैंग्स ऑफ वासेपुर

रूपक

पूरी कहानी एक गहरे अर्थ का प्रतीक है

आंखें, रंग दे बसंती

विरोधाभास

दो विपरीत चीजें एक साथ

लगान: किसान vs अंग्रेज